साथियों! सिंथेटिक चुन्नी और पोशाकों की वजह से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के लिए विभिन्न क्षेत्रों के मंदिरों में जागरूकता अभियान करते करते हमें विभिन्न पुरोहितों से मुलाकातें हुईं जिनमें कि हमें उनकी कई समस्याओं के बारे में पता चला । एक बार फिर जब कोरोना के खतरे को देखते हुए लाॅकडाउन लगा तो हमें फिर उनसे संपर्क किया जिसमें उन्होंने बताया कि वे करीब 3 महीने से खाली बैठे हैं । दरअसल पुरोहितों के बारे में आम जनमानस को इसलिए पता नहीं लग पाता क्योकिं स्वाभिमान के चलते वह किसी से जिक्र नहीं कर पाते चूंकि हम बतौर संस्था उनसे मिलते हैं अतः वे किसी मदद की आस में हमें खुलकर बताते हैं । इस बार हमने यद्यपि जून प्रथम सप्ताह में ही फिर से कोरोना- 2021 राहत कार्यक्रम चलाए लेकिन ये उनके लिए काफी नहीं था। हमने इसके अलावा कुछ युवा पुरोहितों की मृत्यु से उनके परिवारों की कमाई का साधन भी खत्म हो गया । जातिगत सोपान में सबसे ऊपर व्यक्ति के भीतर आर्थिक मुश्किलों ने हताशा भर दी है क्योंकि उनमें इसके अतिरिक्त अन्य किसी कार्य का अनुभव नहीं या फिर वे हर कहीं जैसे कैसे किसी भी सामंजस्य नहीं बिठा पाते । वे अपनी आने वाली पीढ़ियों को इस वृत्ति में नहीं लाना चाहते क्योकिं ज्ञान के बावजूद इसमें न सिर्फ आर्थिक अनिश्चितता है बल्कि बुढ़ापे तक में भी खास प्रगति नहीं । हमने जब उनकी मदद के लिए गूगल नेट पर पुरोहितों से संबंधित आंकड़े जानना चाहा तो पता लगा कि पुरोहित वृत्ति से कितने लोग रोजगार पा रहे है ऐसा कोई आंकड़ा है ही नहीं । फिर हमने पुरोहितों से जुड़े शोध भी गूगल नेट पर खोजे लेकिन हमें एक भी शोध इन पर नहीं दिखा। अतः हमने तय किया कि हम विभिन्न क्षेत्रों के पुरोहितों से मिलकर सर्वे करेंगे और लघु शोध पत्र तैयार करेंगे इसके अतिरिक्त हम उनका वित्तीय कोष युक्त एक ऐसे संगठन का प्रारूप तैयार कर रहे हैं जिसमें उनके लिए आपातकालीन वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके और बुढ़ापे में जब वे अपनी वृत्ति चलाने मे असहाय हो तो पेंशन प्राप्त कर सके । हमने जून प्रथम सप्ताह में ही कोरोना राहत सामग्री वितरण कार्यक्रम इसकी घोषणा भी कर दी थी। फिलहाल इसके लिए बैठकों का दौर शुरू हो चुका है । बहुत जल्द हम ये प्रारूप सबके सामने रखने वाले है और हमें उम्मीद है कि यह सभी पुरोहितों के हित में नयी परंपरा की शुरूआत कर उनकी दशा और दिशा को बेहतर करेगा